अतीत के चलचित्र। (1)
सुबह सवेरे गर्मियों में मन करता था कि थोड़ी देर और सो लिया जाए क्योंकि सुबह की ठंडी हवा मन को इतनी अच्छी लगती कि मन प्रफुल्लित हो जाता था ।
बड़े से ऑंगन में सभी की चारपाई पंक्ति से बिछी रहती।हमारे पिताजी की चारपाई पहले नंबर पर, अंतिम चारपाई मॉं की और बीच में हम भाई-बहन सोया करते थे।
मेरा छोटा भाई हमेशा पिताजी की चारपाई के बराबर ही सोना चाहता क्योंकि वहाँ इकलौते पंखे की हवा कुछ ज़्यादा लगती थी ।
बड़े भैया को गर्मी सहना मंज़ूर था लेकिन पिताजी के पास सोने से घबराते थे।जब तक पिताजी को नींद नहीं आती थी ,सारे काम उन्हीसे कराते ।कभी बिस्तर लाने को कहते तो कभी हाथ से चलाने वाला पंखा मँगाते।पानी का जग और गिलास लेने भेजा करते । बड़े भैया को ही सबके लिए दूध लेने भेजते ,यदि गुनगुना न होता तो उन्हें ही डॉट पड़ती।
सुबह सुप्रभात होते ही मॉं कब उठतीं हम बच्चों को तो पता ही नहीं चलता लेकिन जब पिताजी अंधेरे में ही भैया को उठाने के लिए आवाज़ देते तो हमारी ऑंखें भी खुल जाती ,उठने को तो मन ही नहीं करता।
ऑंगन कच्ची मिट्टी का था।मॉं सप्ताह एक बार गोबर से लीपकर सही करतीं थी इसलिए खाट धीरे-धीरे बिछानेी होती। शाम होते ही हम भाई-बहन मिलकर पूरे ऑंगन में पानी का छिड़काव करते फिर चारपाई,बिस्तर बिछाने का काम बड़े भैया करते और एक स्टूल पर पंखा लगाकर एक स्टूल पर सुराही में सबके पीने के लिए पानी रखते।
जिस दिन गर्मी अधिक होती सब लोग छत पर सोते।एक दिन मौसीजी आई थी,तो ऊपर सोने का प्रोग्राम बनाया ।शाम होते ही हम सब बच्चों ने छत पर पानी छिड़क कर साफ़ किया ।नीचे से एक-एक बाल्टी पानी सब बच्चे लेकर आये मॉं ,पिताजी ,मौसीजी के लिए चारपाइयों पर बिस्तर लगाया और बच्चों का बिस्तर छत पर ही लगा ।
सुराही में पीने का पानी रखा ,सबको दूध का गिलास दिया ।रात को मौसीजी से कहानी सुनी ।सब बच्चों को नींद आगई ।मॉं,पिताजी,मौसीजी देर रात तक बातें करते रहे और बीच-बीच में आवाज़ से मेरी नींद खुल रही थी।
छत पर मौसम सुहावना था मैं चादर ओढ़ कर सो गया। अभी एक घंटे ही नींद आई थी कि पड़-पड़ की आवाज़ से नींद खुल गई,जैसे ही चादर हटाई ,चादर गीली हो गई ।
मॉं तो उठकर चलीं गई ।पिताजी ने भैया को आवाज़ लगाई और सारे बिस्तर समेट कर नीचे ले जाने को कहा ।सब बड़ी ही गहरी नींद में सो रहे थे जल्दी-जल्दी सब समेट कर पंखा,सुराही,बिस्तर लेकर नीचे दौड़े ।
दौड़ने की आवाज़ सुनकर पिताजी ने डाँटा,दौड़ने से गिर जाओगे सीढ़ी पर बहुत पानी है ।धीरे-धीरे नीचे उतरे सभी कपड़े भीग गये ।मॉं ने कपड़े बदलने को दिए ,कपड़े पहनकर फिर से सब के बिस्तर कमरे में लगा दिए ।सो गये लेकिन बहुत देर तक उमस में नींद नहीं आई ।फिर थकान इतनी थी कि कब नींद आगई पता ही नहीं चला।
गहरी नींद में पिताजी की आवाज़ सुन कर सब उठ गए,मॉं ने कहा—-दैनिक कार्य से निवृत्त होकर सब बच्चों नहाने जाओ,जल्दी से।
दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर हम सब नंबर से हाथ से चलाने वाले नल से पानी भरते हुए एक-एक करके नहाये।जलपान करके फिर विद्यालय जाने को तैयार हो गये।
✍️ क्रमश:
आशा सारस्वत